विश्वास पचास प्रतिशत से ऊपर हो

विश्वास पचास प्रतिशत से ऊपर हो लोगों को जीज़स पर बहुत विश्वास था और उस विश्वास की वजह से उन्होंने अपने जीवन में बहुत से चमत्कार होते हुए देखे। जो अंधे थे, उन्हें आँखें मिली, मृत शरीर जीवित हो उठे, जो बीमार थे वे स्वस्थ हो गए। जीज़स के प्रति गहरी आस्था ही इन चमत्कारों की वजह थी। जीज़स ने लोगों को बताया- ‘यदि तुम ठीक होने में विश्वास करते हो तो तुम्हारे विश्वास के अनुसार तुम ठीक हो जाओगे। तुम जितना ज़्यादा विश्वास रख पाओगे, उतना बड़ा चमत्कार देख पाओगे।बस! तुम्हारा विश्वास प्रकट होना चाहिए। मेरे विश्वास के अनुसार तुम ठीक नहीं होगे बल्कि तुम तुम्हारविश्वास के अनुसार ठीक होगे।’ 
     आप चाहे कृष्ण, राम, मीरा या किसी भी धर्म को मानें, उसकी मूल भावना को समझें। यदि आपके अंदर प्रेम और विश्वास संपूर्ण रूप से प्रकट हो जाए तो रिश्तों में मधुरता... संपूर्ण स्वास्थ्य... जीवन में समृद्धि... खुद-ब-खुद आएगी। यकीनन आप अपने जीवन में चमत्कारों को होते हुए देख पाएँगे। यह पढ़कर कोई सोचेगा- ‘कुछ लोगों के लिए सौ प्रतिशत प्रेम और विश्वास प्रकट करना संभव हो सकता है मगर मेरे लिए नहीं।’ लेकिन आपको उतना भी नहीं करना है। आपको बस अपना प्रेम और विश्वास केवल इक्यावन प्रतिशत तक ही प्रकट करना है। आइए, यह समझते हैं कि इक्यावन ही क्यों, पचास क्यों नहीं? अगर हम एक ऐसा परिवार चुनें, जहाँ प्रेम और विश्वास तैंतीस (33) प्रतिशत ही प्रकट हुआ है, फिर भी आप देखेंगे कि वह परिवार खुशहाली का जीवन जी रहा है। तो ज़रा सोचिए अगर यह तैंतीस प्रतिशत से थोड़ा आगे बढ़ेगा तो उस परिवार में कितनी खुशहाली होगी! इस विश्वास और प्रेम को इक्यावन (51) प्रतिशत तक लाना है। कुछ परिवारों में विश्वास से ज़्यादा प्रेम की आवश्यकता होती है तो कुछ में प्रेम से ज़्याद विश्वास की ज़रूरत होती है। अर्थात जहाँ जिसकी कमी है, उसे पूरा करना है। परिवार में जिस चीज़ की कमी होती है, उसकी ज़रूरत ज़्यादा महसूस होती है। 
        जब आप पचास प्रतिशत विश्वास प्रकट करते हैं, इसका अर्थ है कि अभी भी आपके अंदर पचास प्रतिशत अविश्वास है। जब यह विश्वास इक्यावन तक आ जाता है तब आपका अविश्वास उन्चास (49) होता है। अब दो अंकों काफर्क आ गया । आपने पचास से सिर्फ एक प्रतिशत बढ़ाया मगर फर्क दो का आ गया। इसी तरह अगर विश्वास बावन हुआ तो चार अंकों का फर्क आ जाएगा यानी आप विश्वास की स्केल पर अड़तालीस (48) पर आ गए। एक बार आपका विश्वास इक्यावन तक पहुँच जाए तो फिर यह खुद-ब-खुद बढ़ते जाएगा और अविश्वास कम होते जाएगा। इसीलिए कहा गया आपको केवल अपने ऊपर इक्यावन प्रतिशत ही कार्य करना है। उसके लिए सत्य श्रवण, मनन, पठन, ध्यान तथा सत्य का ज्ञान हासिल करना होगा। उसके बाद आप सिर्फ साक्षी भाव से हर घटना को होते हुए देखेंगे। इसके लिए दो शक्तियाँ प्रेम और विश्वास प्रकट होना आवश्यक है। उसके बाद आपको जो टेढ़ा दिखाई दे रहा है, वह सीधा दिखने लग जाएगा। भले ही बाहर से वह टेढ़ा दिखाई दे रहा हो लेकिन विश्वास की आँख देखपाएगीकि यह मात्र दिखावटी सत्य है। असल में वह सीधा ही है। अब ‘तेरा’ कहने में आपको हिचकिचाहट नहीं होगी। आपके लिए यह कहना आसान हो जाएगा- ‘तुम्हें जो लगे अच्छा, वही मेरी इच्छा’ और आपके कर्म में सकारात्मक बदलाव दिखाई देंगे। रोज़मर्रा के कार्य जैसे सुबह उठकर ब्रश करना... चाय पीना... पानी भरना... रसोई का काम करना... स्कूल जाना... ऑफिस जाना आदि हमेशा की तरह ही होंगे मगर सब बदल जाएगा। इन कार्यों में भी एक नया निखार आएगा।

Comments